देखती हूँ
साइकिल
पर लगी वह छोटी
सीट
बुलंद
इरादों की पहली नींव
सोचती
हूँ
वह छोटी सीट ने
कितने फरमान कसे होंगे
उन चेहरे की झुरियोँ ने
कितने अरमान दफनाए होंगे
जरुरी
है
उड़ान
के लिए पंखों की
परवाज
हासिल
करने की ज़िद और
फ़ौलादी आग़ाज़
आपकी
अमृता
अठारह
फ़रवरी दो हज़ार इकीस