Saturday, 29 August 2020

धोबी और मेंढ़क


Pic Credit - Tower of Babel, 1999; Ink on paper (Private collection) WONG SHIH YAW, ABRAHAM 


रोज़ मिलते थे सुबह और शाम कुँए पर

धोबी कुछ अपनी सुनाता, कुछ मेंढक अपनी टरटराता 

कभी रोज की समस्या और बढ़ती महँगाई

कभी काम की चर्चा और घटती कमाई


धोबी एक दिन कहा

"अरे मेंढक भाई दो रुपए में ना होवे पोशाई

मेंढ़क हाज़िर जवाबी, बोला

“धोबी यार दो का चार कर लो ..

क्या तुम भी मेरी तरह, छोटी छोटी बातों में, ख़ामख़ा टरटराते हो?"


धोबी असमंजस में था सोचने लगा ..

"यह लोग जो रोज़ कपड़े धुलवाते हैं, क्या दे पाएँगे दुगनी रक़म?

छोटे मोटे ईमानदार लोग, सुना है कमाते है बेहद कम"

मेंढक ने ढाँढस बंधाई ...

"कहा धोबी भाई कुआं जैसा होवे कमाई, देखे  में छोटा लगे पर होवे है इसमें गहराई

तुम फ़िज़ूल की व्याकुलता में मन हीं मन, नितदिन टरटराते हो" ...



धोबी उठ बैठ गया, मचा दिया चारो और नए रकम की धुलाई का ढिंढोरा
थोड़ी दी महंगाई की भत्ता और दिखाई थोड़ी साफ़ पानी की चिंता

जो मेंढक को लगती थी इतनी सी बात, उसने पुरे नगर में खलबली मचा दी

कानो कान मेंढक ने कल थी सुनी

कुँए पर हो गयी थी हाथापाई

अन्य धोबियों ने उसके धोबी मित्र से कर ली थी लड़ाई

मेंढक यह देख कर हक्का बक्का सा रह गया

सोचा हाय!

देने वाले को जरा ना खटका यह दो रुपये का नया नुस्खा

जिन्हें खटका वह तो अन्य धोबी के सहसा मित्र थे

जिन्हें अक्सर धोबी अपना हितैशी था समझता

अपने हीं अपनों की पीड़ा ना समझें

क्या हो सकता है, इससे बड़ा धोखा ?


मेंढक को अपने किये पर पछतावा भी हुआ और गुमान भी

बोला, "हे मित्र कुँए का मेंढ़क सिर्फ मैं ही नहीं, कुछ मेंढ़क इंसान भी

चलता हूँ मैं अब, अगर मन हो तुम भी चलो

और यह बात गाँठ बाँध लो,

कुआँ में ही रहना है, हम दोनों को

यही नियति है और यही विधान भी“….

 

आपकी अमृता

तीस अगस्त दो हज़ार बीस  

Friday, 21 August 2020

सूखी स्याही

 


 

कित-कित, छुआ-छुई

और खो खो खेले

लाली संग उसकी तीन सहेली

 

खेतों में खलिहानों में

रोज़ पेड़ चढ़ जाए

झूला झूले

लाली संग उसकी तीन सहेली

 

कुएं पर गयी एक दिन

लाली संग उसकी तीन सहेली

दो बित्ते की लाली उठाए

२० लीटर से भरी बाल्टी

 

दौड़ते कदम

धीमे कर दे

पानी से भरी

भारी भरकम बाल्टी

 

एक माँ हीं है समझती

लाली कम है बोलती

पिता गए हैं शहर की ओर

घर में लाली के साथ दो बहनें और हैं रहती

 

साँझ को चूल्हा फूकते - फूकते

माँ को खाँसी गयी जोरों की

लाली दौड़ी कुएं की ओर

जब देखी खाली पड़ी थी बाल्टी

 

पैरों तले कंकड़ पड़े

कुछ छोटे मोटे पत्थर भी

आज अकेले कुएं पर

पानी भर्ती लाली

 

नज़र फेरती यूँही पगडण्डी की ओर

लाली देख कर चौंक गयी

अपनी तीन सहेलियाँ

शायद लौट रहीं थी

स्कूल से वह अपने घर

 

लाली ने ज़ोर से आवाज़ लगाई

बोली दौड़ लगा तुम तीनो, मैं अकेली हूँ

आजा कुएं पर

 

लाली की सहेलियों ने ईशारे से कहा

अभी नहीं, इतवार को मिलेंगे लाली कुएं पर

लाली मायूस हो,

लौटी उठाये बाल्टी 

 

मन हीं मन झुँझलाहट और

आक्रोश से भरी

फिर क्रोध के ताप से

दीवार पर दे मारी

एक साल पहले पिता ने शहर से लायी थी

लाली के लिए लाल कलम और

एक बोतल स्याही

 

माँ घबराई चौखट पर आयी

लाली जमीन पर गिरी पड़ी थी

दीवार पर सूखी थी स्याही

 

कल जो सुबह आएगी

नन्ही नन्ही उँगिलयाँ

और कोमल मासूम हाथोँ से

लाली क्या उठाएगी?

कलम सूखी स्याही से भरी

या बीस लीटर वाली खाली बाल्टी??

 

आपकी अमृता

बाईस अगस्त दो हज़ार बीस

 


Friday, 14 August 2020

जिन्दाबाद आज़ादी

 


जिन्दाबाद आज़ादी 


कूचे गलियारों में घूम रही

एक फलों की टोकरी लिए माथे पर

फटी ओढ़नी और बुलन्द आवाज़ में

तोलतीबेचती

जिन्दाबाद आज़ादी

 

लाल हुई सिगनल पर

एक सात आठ साल की बच्ची

गोद में उठाये नौ महीने  

हाथ फैला माँग रही है वह

हल्कीफुल्की

जिन्दाबाद आज़ादी

 

आँखें टक – टक

देखे आसमाँ को

किसान की मिट्टीयों पर मायूस पड़ी वह

सुखीतपती

जिन्दाबाद आज़ादी

 

एक ठेला लिए जा रहा है

टूटे फूटे, बर्तन, डब्बे

जोर जोर से चीखे चिल्लाये वह

ख़ाली खोखली

जिन्दाबाद आज़ादी

 

राशन जुटाने में जब

एक बच्चा बेचे सब्जी

खत्म सी हो गयी चाहत

ढूंढने की वह

खोयीमहरूम

जिन्दाबाद आज़ादी

 

रंग, मजहब, वेषभूषा से जोड़ कर,

खौफ भरता दोस्ती और भाईचारे में

कभी कटती , कभी बटती

तरसती – प्यासी

जिन्दाबाद आज़ादी

 

एक शिक्षक ने आत्महत्या कर ली

एक आखिरी पाठ छोड़ गया

अमल करने के लिए हम सब के साथ

" भ्रष्टाचार मुर्दाबाद " …

नहीं मिली उसे क्यों उसूल मुताबिक़ 

जिन्दाबाद आज़ादी

 

मन में आह! उठी ..

कई बार यूँही, बचपन में

आज के हीं दिन दोहराई थी

कहाँ ग़ुम हो गयी वह  

"जिन्दाबाद आज़ादी "?

 

चिन्ता भी है, वेदना भी

समस्या गूढ़ है, और भारी भी

चलिए, मिल बाँट के, उठायें यह जिम्मेदारी

नई सोच, नई प्रेरणा लिए

फिर रखें, नए समाज की नींव

मुक्ति पायें संकुचित विचार से

परस्पर प्यार में डूबे, प्रज्वल्लित करें नए दीप

हर्षित, पुलकित, स्थापित करें हम

आज़ाद विचार से भरी, एक परिपूर्ण और सम्मिलित 

जिन्दाबाद आज़ादी !

 

आपकी अमृता

पंद्रह अगस्त दो हज़ार बीस