Friday, 10 July 2020

नानी का घर


                                                                                                                 


नानी का घर 

नानी का घर

एक खुला आँगन,
दाई ओर एक चौकी
चौकी पे बैठी नानी
एक कुआँ
एक चापानल

नानी की वह पीली साड़ी 
छोटी छोटी फूलों वाली

एक अलमारी लकड़ी की
उसमें काजू किसमिस
और बीकाजी

बस ज़्यादा कुछ याद नहीं
कुछ डब्बे थे मसालों के
कहाँ नाम पता था इन रंगीन ख़ज़ानों का
बस लाल मिर्च से डर लगा करता था
उन सब मसालों में कला नमक मेरा फेवरेट था

भूख़ के कई नाम थे
जो हम हक़ से लगाया करते थे
कभी झाल मुढ़ी की
कभी कैनरा बैंक के नीचे वाले समोसे की
कभी काली स्थान के जलेबी की

सबसे लाज़वाब थी इन भूखों में
आम की भूख

चौकी के नीचे बिछ जाया करतीं थीं
मोटे से कर्ल ऑन गद्दे की तरह

मैं हर रोज़ चौकी के नीचे खुस कर
उसे सूंघा और छुआ करती थी
अपने प्यारे फलों को मैं रोज़
जी भर के देखा करती थी

आज यह सोचती हूँ,
क्या आम भी मुझे देखते होंगे ?
क्यों न मैं उस आम के पेड़ को
एक बार अपने आंखों से देख आऊँ
एक बार बस गले लगा कर
थैंक यू बोल आऊं

फिर सोचा आम का पेड़ महान हुआ
या नानाजी की पर्खी नज़र
चुन चुन कर मीठे आम
 कौन लाता था
झोला भर कर ?

नाना नानी का आँगन
शायद जीवन दर्शन था मेरा
एक आदर्श के साथ जीवन जीने की कल्पना
या भविष्य के अस्तित्व के लिए
प्रकृति की संरचना

आपकी अमृता

 ग्यारह जुलाई दो हज़ार बीस

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