अपने हिस्से
का
आसमान
अद्भुत
और विस्तार से भरा
यह नीला - नीला आसमान
रोज़
रोज़ एक ख्वाब दिखाता
चमकता
दमकता आसमान।
उजली
भोर, अक्षय धुप
सिंदूरी
शाम और रात के
अनगिनत
तारों से भरा
चकित
करता आसमान।
बहुत
सी हैं बातें , अधूरी
बिसरी यादें
दिल
को बार बार भ्रमित
करता
यह काले मेघ से
भरा आसमान।
वह शायद किसी
और जन्म की बात थी
एक ऐसा जीवंत
माहौल हुआ करता था
चंचल और कोलाहल
से भरा
लाल गुलाबी
पतंगे लिए
छत पर झूमता
और खिलखिलाता था
रंग बिरंगा
आसमान।
एक बार की बताएं
आपको मज़ेदार बात
यूँही
नंगे पाँव पाँव एक
दिन अकस्मात
आसमान
भी उड़ चल दिया
था, भई मेरे साथ
मैंने
पुछा था आसमान से
काहे
पड़े हो हमारे पीछे
दूपहरिया
से
आसमान
बोला
आजा
आज चटाई पर लेट
कर धूप सेकेंगे
तुम
अक्सर सुस्ती काट
पसर
जाती हो बात बात
याद
है उस दिन आसमान
तुम्हारे साथ
कितना
समय था मैंने बिताया
पूरी
रात टिमटिमाती तारों को कितना था
मैंने सताया
अँधेरे
में एक टॉर्च लेकर
तुम्हारे सारे तारों को
पहले था छेड़ा फिर
मनाया।
और दादी के छत
पर तुमने कैसा खेला खेल
नुक्का छिप्पी का
कभी
अमावश्या की अँधियारी और
कभी चकाचौंध जगमग पूर्णिमा सा
तुमने
तो मुझे बेवज़ह था
इतना भरमाया
मेरा
प्यारा सा हँसता बोलता
करतब
और अठखेलियां करता
असीमित
सपनों से भरा
मेरा वाला आसमान।
ज़िन्दगी
एक सुनहरे स्वपन सी
बेहतर
बनाने की ज़िद थी
कभी
रात भर पढ़ लिख
कर
सुबह
ओढ़ लीया था आसमान।
शायद
मेहनत की अपनी क़ीमत
थी
भोले
भाले माँ बाप ने
यूँही मासूमीयत लिए
न्योछावर
कर दिया थे हम
पर
अपने
उम्र भर का आसमान।
हम भी बच्चे थे
ज़िद्दी
उड़ने
की इतनी थी जल्दी
क्षण
भर में भूला दिया
अरमानों
वाला आसमान।
बना
लिया एक अपना
छोटा
सा आशियान
और थाम ली भारी
भरकम घर गृहस्थी
किसी
को क्या पड़ी की
ढूंढे
अपने
खोये हुए आसमान।
अब आदतन हर शाम
एक अदरक वाली चाय
के साथ
टकटकी
लगाए देखते हैं हम बॉलकनी
से चुप चाप
उन्मुक्त
गगन
उड़ते
पक्षियों के पर
हवाओँ
की महक
और फिर
एक गहरी साँस के
साथ
घुस
जाया करते हैं बेमन
दो कमरे, बिना सिर – पैर
के
इस स्क्वायर फ़ीट
वाले फ्लैट में।
और नम आँखों से
अलविदा कहता है मुझे
मेरे
हिस्से वाला
दो बीत्ते का आसमान। ...
आपकी
अमृता
चौबीस
जुलाई दो हज़ार बीस
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