जिन्दाबाद आज़ादी
कूचे
गलियारों में घूम रही
एक फलों की टोकरी
लिए माथे पर
फटी
ओढ़नी और बुलन्द आवाज़
में
तोलती
– बेचती
जिन्दाबाद आज़ादी
लाल
हुई सिगनल पर
एक सात आठ साल
की बच्ची
गोद
में उठाये नौ महीने
हाथ
फैला माँग रही है
वह
हल्की
– फुल्की
जिन्दाबाद आज़ादी
आँखें
टक – टक
देखे
आसमाँ को
किसान
की मिट्टीयों पर मायूस पड़ी
वह
सुखी
– तपती
जिन्दाबाद आज़ादी
एक ठेला लिए जा
रहा है
टूटे –
फूटे, बर्तन, डब्बे
जोर
जोर से चीखे चिल्लाये
वह
ख़ाली –
खोखली
जिन्दाबाद आज़ादी
राशन
जुटाने में जब
एक बच्चा बेचे सब्जी
खत्म
सी हो गयी चाहत
ढूंढने
की वह
खोयी
– महरूम
जिन्दाबाद आज़ादी
रंग,
मजहब, वेष – भूषा से जोड़
कर,
खौफ
भरता दोस्ती और भाईचारे में
कभी
कटती , कभी बटती
तरसती –
प्यासी
जिन्दाबाद आज़ादी
एक शिक्षक
ने आत्महत्या कर ली
एक आखिरी पाठ छोड़ गया
अमल
करने के लिए हम
सब के साथ
" भ्रष्टाचार
मुर्दाबाद " …
नहीं मिली उसे क्यों उसूल मुताबिक़
जिन्दाबाद आज़ादी
मन में आह! उठी
..
कई बार यूँही, बचपन में
आज के हीं दिन
दोहराई थी
कहाँ ग़ुम हो
गयी वह
"जिन्दाबाद
आज़ादी "?
चिन्ता भी है,
वेदना भी
समस्या गूढ़
है, और भारी भी
चलिए,
मिल बाँट के, उठायें यह जिम्मेदारी
नई सोच, नई प्रेरणा
लिए
फिर रखें, नए
समाज की नींव
मुक्ति पायें
संकुचित विचार से
परस्पर
प्यार में डूबे, प्रज्वल्लित
करें नए दीप
हर्षित, पुलकित,
स्थापित करें हम
आज़ाद विचार
से भरी, एक परिपूर्ण और
जिन्दाबाद आज़ादी
!
आपकी
अमृता
पंद्रह
अगस्त दो हज़ार बीस
Meaningful, comprehensive and reflective poetry. 🤗🤗👍👍
ReplyDeleteGreat
ReplyDelete