सवाल
सवाल ज़ख़्म है, टीस है, दर्द भी
सवाल सोच है, बारूद है, बम भी
सवाल आँधी है, तूफ़ाँ है, ज़लज़ला भी
सवाल हवा है, समंदर है, आसमाँ भी
सवाल हक़ीक़त पर इल्ज़ाम है, ज़ालिम है, मुज़रिम भी
सवाल ख़्वाब है, उसूल है, तहज़ीब भी
सवाल गुनाह है, गवाह है, क़ातिल भी
सवाल इन्साफ़ है, हक़ है, ज़ंग भी
सवाल जात है, क़ौम है, मज़हब भी
सवाल जड़ है, ज़मीन है, जंगल भी
सवाल सुकरात है, मार्क्स है, लेनिन भी
सवाल भगत है, जवाहर है, अंबेडकर भी
सवाल गाँव है, बस्ती है, कूचे भी
सवाल बुलडोज़र है, मलबा है, हाथरस भी
सवाल न्याय है, सत्य है, अहिंसा भी
सवाल नानक है, गाँधी है, बुद्ध भी
सवाल पेड़ है, धूप है, पानी भी
सवाल शिक्षा है, भूख़ है, अस्पताल भी
सवाल ख़ेत-खलिहान है, मकान भी
सवाल सरकारी योजनाएँ है, रोटी है, राशन भी
सवाल अल्लाह है, येसु है, राम भी
सवाल सहूलियत है सियासत की और कुर्सियों की
सवाल गरीबों, बेकसों, बेसहारों की
सवाल चीथड़ों की और शहंशाही ख़ज़ानो की
सवाल नफ़रती, ज़ुल्मी, धर्म के ढेकेदारों की
सवाल क़ुर्बान जवानों की, वीराँ गुलशन में गुलाबों और जज़्बातों की
सवाल जिन्दा उमंगों की, तड़पती तिलमिलाती बग़ावतों की
सवाल रूह है हमारी, हदस में लिपटी ज़िस्म की
सवाल नसों में खौलते ख़ून से, उफनती साँसों से
सवाल सदियों की ख़ामोश आवाज़ों से, ज़बानों से
सवाल अमन - आशा भरी, इंसानियत की
सवाल सख़्त- ज़िद्दी और इंक़लाबी भी
चलो अब हम अपने ये
सारे मनहूस, बदहवास,
सरदर्द से सवालों को
एक संदूक़ में भरकर,
दफ़्न कर दें तहख़ानों में
सुना है, कल सुबह
रेशमी लिबास ओढ़े
लाल क़िले से
शहंशाह फिर फहराएँगे
जवाबों का जश्न
आपकी अमृता
चार अप्रैल, दो हज़ार चौबीस
(04/04/2024)
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