Saturday, 8 February 2025

साइकिल (नानाजी की याद में)

 साइकिल 

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एक हाथ में झोला , झोले में कुछ फल और सब्जी 


समय रोज़ रात साइकिल पर सवार हो मिलने चली आती है। 

दोनों आँखों में दो बड़े पहिए भागते- दौड़ते रहते हैं।

पुतलियाँ पैडल मारती हैं और सरसराती हवा फिर मुझे वहीं ले जाती हैं ।

एक - एक करके सारे शहर के लोग दिखते हैं 

लोग जिनके चेहरे नहीं है 

लोग जो ख़्वाब से हैं , 

लोग जो ख़ुशबू हैं 

लोग जो व्यस्त हैं और थोड़े मस्त!

बेफिक्र! से टहलते 

चश्मा लगाते और मचलते 

पता नहीं क्या ढूँढ रहें है 

पर सब कहीं जा रहें हैं 

लोग दुकान से और कुछ मकान से 

लोग बोरे में भरे राशन, और सामान से 

और कुछ लोग खाली डब्बे से 

इन हज़ार लोगों के बीच में 

सफेद गद्दी पर बैठे, सफेद धोती पहने 

मेरे प्यारे नानाजी!


मुस्कुराते और हँसते हुए कहते हैं, 

आगे बढ़ो खड़ी क्यों हो? 


एक हाथ में झोला , झोले में कुछ फल और सब्जी 


समय रोज़ रात साइकिल पर सवार हो मिलने चली आती है। 

दोनों आँखों में दो बड़े पहिए भागते- दौड़ते रहते हैं।

पुतलियाँ पैडल मारती हैं और सरसराती हवा फिर मुझे वहीं ले जाती हैं ।


आपकी अमृता 

15 दिसंबर 2024

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