तलाश
आओ
इन आँखों पर वक़्त कि बेड़ियाँ लगा दें
ज़ंजीरों में जकड़ लें ख़्वाबों के समंदर
बेख़ौफ़ सी आँखें यहाँ-वहाँ घूमती है
आओ
क़ैद कर लें इन्हें सलाखों में
और पहरा लगा दें सुनसान साहिलों पर
कल रात ग़ुस्ताख़ी से झाँका था मैंने
आँखों के तहख़ानों में
मिट्टी में सनी - लिपटी थी ख़ामोशी
भटक रही थी रूह लिए
आरज़ुओं का खंडहर
आपकी अमृता
15 दिसंबर 2024
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