Saturday, 8 February 2025

तलाश

 तलाश 


आओ 

इन आँखों पर वक़्त कि बेड़ियाँ लगा दें 

ज़ंजीरों में जकड़ लें ख़्वाबों के समंदर 


बेख़ौफ़ सी आँखें यहाँ-वहाँ घूमती है 

आओ 

क़ैद कर लें इन्हें सलाखों में 

और पहरा लगा दें सुनसान साहिलों पर 


कल रात ग़ुस्ताख़ी से झाँका था मैंने 

आँखों के तहख़ानों में 

मिट्टी में सनी - लिपटी थी ख़ामोशी 

भटक रही थी रूह लिए 

आरज़ुओं का खंडहर 


आपकी अमृता 

15 दिसंबर 2024

No comments:

Post a Comment