Saturday, 8 February 2025

सही और ग़लत

 धूप- धूप ज़िन्दगी 

छाँव- छाँव सफ़र 

एक गुल्लक़ अरमानों का 

सिक्का-सिक्का जोड़कर 

हर रात कल पर टालती 

सूखी- स्याही मेज़ पर 

सुलगती चिंगारी 

धीमें- धीमें आँच पर 

ना उम्मीद सी दरखास्त 

बेजाँ- बेज़ुबाँ चीख़े चिल्लाए 

झूठ फ़रेब की चाँदनी 

उलझे- उलझे सच के भँवर 


आपकी अमृता 

10 नवम्बर, दो हज़ार चौबीस

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