धूप- धूप ज़िन्दगी
छाँव- छाँव सफ़र
एक गुल्लक़ अरमानों का
सिक्का-सिक्का जोड़कर
हर रात कल पर टालती
सूखी- स्याही मेज़ पर
सुलगती चिंगारी
धीमें- धीमें आँच पर
ना उम्मीद सी दरखास्त
बेजाँ- बेज़ुबाँ चीख़े चिल्लाए
झूठ फ़रेब की चाँदनी
उलझे- उलझे सच के भँवर
आपकी अमृता
10 नवम्बर, दो हज़ार चौबीस
No comments:
Post a Comment