परछाइयाँ
वक्त के कदमों तले, बचपन अपनी जड़ों से हमें रोज़ मज़बूती से जीने की प्रेरणा देता है। नाना- नानी और दादी मेरे बचपन की ऐसी कड़ी है, जो एक साये की तरह, हमेशा मेरे साथ रहते हैं। इनके व्यक्तित्व के प्रभाव और तेज मेरे जीवन में हर दिन जीने की लौ को और प्रबल करती है।
मेरे प्यारे नानाजी को गए हुए एक साल बीत गए। यह कहानी उन सब लोगों के लिए है, जिन्होंने नानाजी के साथ उतना वक्त नहीं बिताया, जितना मैंने।
शीर्षक-
प्रेम कहानी फल और फूल की जुबानी
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आँगन में खड़ा बचपन अपने आँखों में कुएँ सा भरा पानी लिए रोज़ चौखट पर इंतज़ार किया करता है।
ज़िंदगी किसी के आने और चले जाने से नहीं रुकती है। अनगिनत यादों के बीच चार नीले अपराजिता के फूल आज भी मुझे अतीत के बादल से घेर लेते हैं।
रोज़ सवेरे नहाने के पहले नानाजी फूल तोड़ा करते थे। फूलों की डलिया में नानाजी लाल-लाल अड़हुल, रंग-बिरंगे सदाबहार और नीले - नीले अपराजिता के फूल नानी के पूजा के लिए रोज़ चुन -चुन कर तोड़ा करते थे। जैसे हर फूल से कह रहे हों - “पप्पू माय को खुश करना है”। (मेरे बड़े मामा को नाना जी पप्पू नाम से पुकारा करते थे और क्यूँकि वो बड़े थे नानी का नाम आजीवन पप्पू माय हीं रहा)
गर्मी के दिनों में, आँगन में धूप के आने से पहले तड़के सुबह , बारिश के मौसम में सर पर गमछा लिए और ठंड के दिनों में रुक - रुक कर हर टहनी पर मुआयना करते हुए कहते “पप्पू माय आज चार- पाँच फूल हीं खिला है, तोड़ लेते हैं, कल ज़्यादा खिलेगा तो और चढ़ा लेना।”
खेलते - कूदते मैं रोज़ उनके आँगन में आने का इंतज़ार करती थी और मन हीं मन सोचती थी, आज फूलों का डलिया आधा भरेगा या पूरा ?
नानी ठीक उसी समय हर सुबह फल काटा करती थी। फल हमेशा नानाजी झोले में लाते थे और अन्य सामान के बीच कभी - कभी कुछ फल दब जाया करते थे। कुछ दबे हुए फल नानाजी सस्ते दामों के वजह से भी ख़रीद लिया करते थे। १० - १२ लोगों के परिवार में सबको फल मिले यह बात आज भी आश्चर्यचकित करने वाली है ।
नानी हमेशा फल काटते वक्त सबसे अच्छा और पका हुआ हिस्सा नानाजी के लिए और परिवार के अन्य लोगों के लिए एक स्टील की थाली में रखती थी। और हर दिन ख़ुद सबसे ज़्यादा दबा, ज़्यादा पका हुआ फल ख़ुद खा लिया करती थी।
नानाजी फूलों को तोड़कर उन्हें पूजा घर में रख आते थे। और नानी हर दिन सूखे फूलों को हटा कर फिर नए फूलों से पूजा घर सजा देती थी। मैं अक्सर सोचती थी, भगवान को नानाजी सीधे फूल क्यों नहीं चढ़ा देते, नानी काम में कितनी व्यस्त है।
पर कैसे कहती? नानी की मिश्री और किशमिश मेरी जुबान को हमेशा बंद रखती थी ।
प्रेम बिना कहे भी कितना कुछ कहता है। त्याग और समर्पण हर रिश्ते को अनमोल बना देते हैं।
मेरी समझ तब इतनी गहरी नहीं थी कि मैं नानाजी और नानी के प्रेम को समझ पाती। नानाजी को गए अब एक साल से ज़्यादा हो गया है।
जीवन के चक्र में हम सब अपने - अपने जगह बंधे हैं ।फिर भी, मेरे आँगन में रोज़ अपराजिता के फूल मुस्कुराते हैं, जैसे मुझे पुकार रहें हैं। बचपन नीले फूल और नीले आसमान सा पूरे जीवन साथ चलता है ।
आँगन में खड़ा बचपन आज भी, अपने आँखों में कुएँ सा भरा पानी लिए रोज़ चौखट पर इंतज़ार किया करता है।
ज़िंदगी किसी के आने और चले जाने से नहीं रुकती है, ये सच है
पर हर रंग दिल पर एक निशान छोड़ जाता है।
फलों और फूलों के बीच नानाजी की याद में बीता बचपन आज उनको भावपूर्ण श्रद्धांजलि देता है)
अमृता
06/09/2025